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वी.एस. अच्युतानंदन का निधन: केरल के राजनीतिक इतिहास का एक अदम्य ‘कॉमरेड’

वी.एस. अच्युतानंदन

केरल के राजनीतिक परिदृश्य में एक ऐसे दिग्गज नेता का नाम, जिसने दशकों तक राज्य की राजनीति को एक नई दिशा दी, वह है वेलिक्ककाथु शंकरन अच्युतानंदन, जिन्हें प्यार से ‘ वी.एस. अच्युतानंदन ‘ के नाम से जाना जाता था। 20 अक्टूबर 1923 को अलाप्पुझा के पुन्नाप्रा में जन्मे, वी.एस. का जीवन गरीबी, शुरुआती नुकसान और निरंतर संघर्षों से भरा रहा, जिसने उन्हें एक मजदूर नेता से मुख्यमंत्री तक का सफर तय कराया। 21 जुलाई 2025 को 101 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया, और उनके साथ ही केरल के राजनीतिक इतिहास के एक स्वर्णिम अध्याय का समापन हो गया।

संघर्ष भरा बचपन और कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़ाव

वी.एस. ने छोटी उम्र में ही अपनी माँ और फिर पिता को खो दिया था, जिसके कारण उन्हें सातवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। उन्होंने अपने बड़े भाई की दर्जी की दुकान पर और बाद में एक कॉयर फैक्ट्री में काम किया। यहीं से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई, जब वे ट्रेड यूनियन गतिविधियों से जुड़े। 1938 में वे स्टेट कांग्रेस में शामिल हुए और 1940 में अविभाजित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के सदस्य बन गए।

वी.एस. ने अपनी युवावस्था और शुरुआती वयस्क वर्षों को कुट्टानाड के कृषि मजदूरों और कॉयर श्रमिकों की हड़तालों को संगठित करने में समर्पित किया। उन्होंने त्रावणकोर राज्य के तत्कालीन दीवान के खिलाफ कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं के पुन्नाप्रा-वायलार विद्रोह में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आजादी के बाद के वर्षों में उन्हें पाँच साल से अधिक समय तक जेल में रहना पड़ा और साढ़े चार साल तक गिरफ्तारी से बचने के लिए भूमिगत रहना पड़ा।

पार्टी में उदय और सीपीआई (एम) के संस्थापक सदस्य

1950 के दशक में, वी.एस. ने सीपीआई के भीतर तेजी से तरक्की की, अलाप्पुझा डिवीजन के सचिव से लेकर राज्य सचिवालय के सदस्य और 1958 में राष्ट्रीय परिषद के सदस्य बने। 1964 में, जब सीपीआई में विभाजन हुआ, तो वी.एस. उन 32 राष्ट्रीय परिषद के सदस्यों में से थे जिन्होंने अलग होकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) [CPI(M)] का गठन किया। वह सीपीआई (एम) के उन संस्थापकों में से अंतिम जीवित सदस्य थे। 1980 से 1992 तक उन्होंने सीपीआई (एम) की केरल राज्य समिति के सचिव के रूप में कार्य किया, जो कि गठबंधन राजनीति के दौर में एक महत्वपूर्ण पद था। 1985 में वे सीपीआई (एम) के पोलित ब्यूरो के सदस्य भी बने, हालांकि बाद में उन्हें पार्टी अनुशासन के उल्लंघन के कारण हटा दिया गया था।

विपक्ष के नेता के रूप में जननायक

हालांकि वी.एस. ने 1965 में अम्बालापुझा से अपना पहला विधानसभा चुनाव हार गए थे, लेकिन 1967 और 1970 में उन्होंने उसी सीट से जीत हासिल की। उनकी राजनीतिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण मोड़ 2001 से 2006 तक विपक्ष के नेता के रूप में उनका कार्यकाल था। इस दौरान वे एक जुझारू कम्युनिस्ट से जनमानस के प्यारे नेता बन गए। उन्होंने विभिन्न सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों, जैसे मुल्लापेरियार बांध, मथिकट्टन बांध और कासरगोड में एंडोसल्फान मुद्दे को सक्रिय रूप से उठाया। भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी दृढ़ता और भूमि अतिक्रमण के खिलाफ उनके अभियान ने उन्हें जनता के बीच एक अलग पहचान दिलाई।

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केरल के मुख्यमंत्री और विरासत

2006 में, 82 वर्ष की आयु में, वी.एस. अच्युतानंदन केरल के मुख्यमंत्री बने, जो इस पद को संभालने वाले सबसे उम्रदराज व्यक्ति थे। उनके कार्यकाल के दौरान, उन्होंने मुन्नार में सरकारी भूमि पर अतिक्रमण हटाने के लिए एक विवादास्पद विध्वंस अभियान शुरू किया। उन्होंने कोच्चि एम.जी. रोड पर सड़क के किनारे से अतिक्रमण हटाने, फिल्म पायरेसी के खिलाफ अभियान चलाने और अवैध लॉटरी सिंडिकेट पर नकेल कसने जैसे कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनके कार्यकाल में वल्लारपादम कंटेनर टर्मिनल, कोल्लम में टेक्नोपार्क और कन्नूर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे जैसे प्रमुख विकास परियोजनाओं की भी नींव रखी गई।

विवाद और दृढ़ता

वी.एस. का राजनीतिक जीवन विवादों से अछूता नहीं रहा। पार्टी के भीतर उनके मुखर विचार और अनुशासन को लेकर उनकी असहमति अक्सर चर्चा में रही। 2009 में, उन्हें पी.बी. से हटा दिया गया था, जो पीनाराई विजयन से जुड़े एसएनसी-लावलीन मामले में उनके रुख के कारण हुआ था। 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के बाद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के परिवार से मिलने के बाद उनकी एक टिप्पणी भी राष्ट्रीय स्तर पर विवादों में घिर गई थी। हालांकि, इन सब के बावजूद, वी.एस. अपनी दृढ़ता, ईमानदारी और आम आदमी के लिए लड़ने की प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे।

वी.एस. अच्युतानंदन ने 2016 से 2021 तक राज्य प्रशासनिक सुधार आयोग के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। 2019 में एक छोटे स्ट्रोक के बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली थी।

वी.एस. अच्युतानंदन का निधन केरल की राजनीति में एक युग के अंत का प्रतीक है। उनका जीवन, जो संघर्ष और जनसेवा को समर्पित था, भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना रहेगा। वह एक ऐसे नेता थे जिन्होंने अपनी जड़ों को कभी नहीं भुलाया और हमेशा गरीबों और वंचितों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई।

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