भारत के बैंकिंग क्षेत्र में एक समय चमकता सितारा रहीं आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व सीईओ और प्रबंध निदेशक चंदा कोचर(chanda kochhar) का नाम अब एक बड़े वित्तीय घोटाले से जुड़ गया है। यह मामला ₹3,250 करोड़ के ऋण, ₹64 करोड़ की कथित रिश्वत और बैंक की शीर्ष बैंकर की संदिग्ध भूमिका को लेकर है, जिसने देश के कॉरपोरेट जगत में हलचल मचा दी है। हाल ही में, एक अपीलीय ट्रिब्यूनल ने चंदा कोचर को वीडियोकॉन समूह से ₹64 करोड़ की रिश्वत स्वीकार करने का दोषी पाया है, जो इस जटिल मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।
मामले की जड़: ऋण और quid pro quo
इस धोखाधड़ी की जड़ 2009 से 2012 के बीच आईसीआईसीआई बैंक द्वारा वीडियोकॉन समूह को दिए गए ₹3,250 करोड़ के ऋण में है। आरोप है कि आईसीआईसीआई बैंक ने, चंदा कोचर के नेतृत्व में, वीडियोकॉन समूह की विभिन्न कंपनियों को बैंकिंग विनियमन अधिनियम, भारतीय रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों और बैंक की क्रेडिट नीतियों का उल्लंघन करते हुए कुल ₹1,875 करोड़ के छह ऋणों को मंजूरी दी। सीबीआई की प्रारंभिक जांच में पाया गया कि ये ऋण बाद में 2012 में गैर-निष्पादित संपत्ति (NPA) घोषित किए गए, जिससे बैंक को ₹1,730 करोड़ का भारी नुकसान हुआ।
इस मामले में सबसे अहम लेनदेन सितंबर 2009 का है। आईसीआईसीआई बैंक ने वीडियोकॉन इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (VIEL) को ₹300 करोड़ का ऋण वितरित किया। चौंकाने वाली बात यह थी कि इस वितरण के ठीक एक दिन बाद, वीडियोकॉन समूह की एक कंपनी सुप्रीम एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड (SEPL) से ₹64 करोड़ की राशि न्यूपावर रिन्यूएबल्स प्राइवेट लिमिटेड (NRPL) को हस्तांतरित की गई। न्यूपावर रिन्यूएबल्स एक ऐसी फर्म थी जिसे प्रभावी रूप से चंदा कोचर के पति दीपक कोचर नियंत्रित कर रहे थे। जांचकर्ताओं ने इस लेनदेन को “क्विड प्रो क्वो” (quid pro quo) करार दिया, जिसका अर्थ है कि यह लेनदेन एक लाभ के बदले लाभ था, जिसमें कथित तौर पर कोचर को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ पहुंचाया गया।
चंदा कोचर (Chanda Kochhar) की कथित भूमिका और हितों का टकराव
चंदा कोचर (Chanda Kochhar) पर आरोप है कि उन्होंने आईसीआईसीआई बैंक की एमडी और सीईओ रहते हुए अपने पद का दुरुपयोग किया। उन्होंने उस ऋण स्वीकृति समिति की अध्यक्षता की, जिसने वीडियोकॉन को ₹300 करोड़ का ऋण दिया, जबकि उनके पति की कंपनी को वीडियोकॉन से सीधा वित्तीय लाभ मिला। अपीलीय ट्रिब्यूनल ने भी इस बात पर जोर दिया है कि कोचर ने इस हितों के टकराव (conflict of interest) का खुलासा नहीं किया, जो बैंक की आंतरिक नीतियों का घोर उल्लंघन था। ट्रिब्यूनल ने स्पष्ट रूप से कहा कि भले ही कागजों पर न्यूपावर रिन्यूएबल्स का स्वामित्व वीडियोकॉन समूह के प्रमोटर वेणुगोपाल धूत के पास दिखाया गया था, लेकिन धूत ने खुद स्वीकार किया कि इसका वास्तविक नियंत्रण दीपक कोचर के पास था।
जांच और कानूनी प्रक्रिया
इस मामले में पहली बार चिंता 2016 के आसपास सामने आई, जब व्हिसलब्लोअर और पत्रकारों ने चंदा कोचर की ऋण स्वीकृति भूमिका और उनके पति के व्यावसायिक संबंधों के बीच संभावित हितों के टकराव की ओर इशारा करना शुरू किया। मार्च 2018 में, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने आईसीआईसीआई-वीडियोकॉन ऋण लेनदेन में कथित अनियमितताओं की प्रारंभिक जांच शुरू की। अक्टूबर 2018 में, बढ़ती जांच के बीच चंदा कोचर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
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जनवरी 2019 तक, सीबीआई ने अपनी जांच तेज कर दी और चंदा कोचर(Chanda Kochhar), दीपक कोचर और वीडियोकॉन समूह के प्रमोटर वेणुगोपाल धूत के खिलाफ आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और आधिकारिक पद के दुरुपयोग के आरोप में औपचारिक प्राथमिकी (FIR) दर्ज की। इसके बाद, प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत अपनी जांच शुरू की और कोचर से संबंधित ₹78 करोड़ की संपत्ति को अस्थायी रूप से जब्त कर लिया। हालांकि, नवंबर 2020 में, PMLA के तहत निर्णायक प्राधिकरण ने इन संपत्तियों को जारी करने की अनुमति दी, यह तर्क देते हुए कि ईडी ने उस स्तर पर सीधा लिंक स्थापित नहीं किया था।
लेकिन, दिसंबर 2022 में सीबीआई ने चंदा कोचर, दीपक कोचर और वेणुगोपाल धूत को गिरफ्तार कर लिया, यह दावा करते हुए कि उन्हें वीडियोकॉन के साथ वित्तीय व्यवस्था में कोचर की संलिप्तता का पुख्ता सबूत मिला है। हालांकि, जनवरी 2023 में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने कोचर को अंतरिम जमानत दे दी, उनकी गिरफ्तारी को “मनमाना” बताया और कहा कि उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था।
नवीनतम फैसला और निहितार्थ
3 जुलाई, 2025 को दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले में, स्मगलर और विदेशी मुद्रा हेरफेर (संपत्ति की जब्ती) अधिनियम (SAFEMA) के तहत अपीलीय ट्रिब्यूनल ने चंदा कोचर को ₹300 करोड़ के ऋण को मंजूरी देने के बदले में ₹64 करोड़ की रिश्वत स्वीकार करने का दोषी पाया है। ट्रिब्यूनल ने ₹78 करोड़ की संपत्तियों की कुर्की को भी बरकरार रखा है, जो पहले PMLA निर्णायक प्राधिकरण द्वारा जारी करने का आदेश दिया गया था। ट्रिब्यूनल ने पूर्व के निर्णय को “त्रुटिपूर्ण” बताया, जिसमें कहा गया था कि यह “अप्रासंगिक विचारों” पर आधारित था और “भौतिक तथ्यों को नजरअंदाज” किया गया था।
यह फैसला भारत में कॉरपोरेट धोखाधड़ी और हितों के टकराव की जांच में एक महत्वपूर्ण कदम है और बैंकिंग क्षेत्र में अधिक जवाबदेही के लिए एक मिसाल कायम करता है। यह कोचर के कार्यकाल के दौरान आईसीआईसीआई बैंक में आंतरिक निगरानी और हितों के टकराव की नीतियों में गंभीर चूक को भी रेखांकित करता है। चंदा कोचर का एक शीर्ष बैंकर से आरोपी बनने तक का सफर, भारत में आधुनिक पूंजीवाद के वादों और खतरों दोनों को दर्शाता है, जहां शक्ति, यदि नैतिकता से अलग हो जाए, तो संस्थानों को भी नष्ट कर सकती है।