“कॉर्पोरेट दफ्तरों का ‘छपरीकरण’ रोके भारत: विदेशी क्लाइंट के स्वागत में डांस पर भड़की बहस”
सोशल मीडिया पर इन दिनों भारतीय कॉर्पोरेट दफ्तरों में मेहमाननवाज़ी के एक खास तरीके को लेकर तीखी बहस छिड़ गई है। ‘वोके एमिनेंट’ नाम के एक ट्विटर यूजर ने @WokePandemic हैंडल से एक ट्वीट कर सवाल उठाया है कि क्या कॉर्पोरेट ऑफिसों का ‘छपरीकरण’ बंद होना चाहिए।
ट्वीट में यूजर ने लिखा, “यह देखकर बहुत दयनीय लगता है कि भारतीय लड़कियां ऑफिस में नाच रही हैं और एक विदेशी क्लाइंट का स्वागत कर रही हैं, और उस बेचारे क्लाइंट को भी नाचने के लिए मजबूर किया जा रहा है।” यूजर का मानना है कि इस तरह का प्रदर्शन अन्य देशों को यह महसूस कराएगा कि भारतीय कार्यालय कैजुअल हैं और गंभीर काम के लायक नहीं हैं।
यह ट्वीट सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है और लोगों को दो धड़ों में बांट दिया है। एक धड़ा इस बात से सहमत है कि कॉर्पोरेट माहौल में अत्यधिक अनौपचारिकता और इस तरह के ‘मनोरंजन’ का समावेश पेशेवर छवि के लिए हानिकारक हो सकता है। उनका तर्क है कि व्यावसायिक बैठकों और क्लाइंट के स्वागत में गंभीरता और व्यावसायिकता का प्रदर्शन आवश्यक है, ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की एक मजबूत और पेशेवर छवि बन सके। ऐसे लोग मानते हैं कि इस तरह की गतिविधियां व्यावसायिक माहौल की गंभीरता को कम करती हैं और भारत को एक “कैजुअल” वर्कप्लेस के रूप में प्रस्तुत कर सकती हैं।
वहीं, दूसरा धड़ा इस बात से असहमत है और इसे भारतीय संस्कृति में ‘अतिथि देवो भव’ के सिद्धांत का विस्तार मानता है। उनका तर्क है कि विदेशी मेहमानों का गर्मजोशी से और अनूठे तरीके से स्वागत करना भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। कुछ लोगों का कहना है कि यह एक तनावपूर्ण माहौल को हल्का करने और क्लाइंट के साथ एक व्यक्तिगत संबंध बनाने का एक तरीका हो सकता है। उनका मानना है कि नाच-गाना खुशी और अपनेपन की भावना व्यक्त करता है, और इसे व्यावसायिकता की कमी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
हालांकि, इस बात पर आम सहमति है कि संतुलन महत्वपूर्ण है। क्या इस तरह के प्रदर्शन सभी क्लाइंट्स के लिए उपयुक्त हैं, खासकर जब वे गंभीर व्यावसायिक सौदों के लिए आ रहे हों? क्या क्लाइंट को नृत्य करने के लिए ‘मजबूर’ करना उनकी संस्कृति और आराम के स्तर के प्रति असंवेदनशीलता हो सकती है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिन पर विचार करने की आवश्यकता है।
यह घटना कॉर्पोरेट जगत में बढ़ती अनौपचारिकता और व्यावसायिक मर्यादा के बीच की बहस को फिर से सामने लाती है। क्या भारत को अपनी अनूठी संस्कृति और गर्मजोशी को व्यावसायिकता के साथ संतुलित करने का एक तरीका खोजना होगा, या फिर उसे अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप अधिक औपचारिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए? यह सवाल फिलहाल चर्चा का विषय बना हुआ है।
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